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च॒न्द्रमा॒ मन॑सो जा॒तश्चक्षोः॒ सूर्यो॑ऽअजायत। श्रोत्रा॑द्वा॒युश्च॑ प्रा॒णश्च॒ मुखा॑द॒ग्निर॑जायत ॥१२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

च॒न्द्रमाः॑। मन॑सः। जा॒तः। चक्षोः॑। सूर्यः॑। अ॒जा॒य॒त॒ ॥ श्रोत्रा॑त्। वा॒युः। च॒। प्रा॒णः। च॒। मुखा॑त्। अ॒ग्निः। अ॒जा॒य॒त॒ ॥१२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:31» मन्त्र:12


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! इस पूर्ण ब्रह्म के (मनसः) ज्ञानस्वरूप सामर्थ्य से (चन्द्रमाः) चन्द्रलोक (जातः) उत्पन्न हुआ (चक्षोः) ज्योतिस्वरूप सामर्थ्य से (सूर्य्यः) सूर्य्यमण्डल (अजायत) उत्पन्न हुआ (श्रोत्रात्) श्रोत्र नामक अवकाश रूप सामर्थ्य से (वायुः) वायु (च) तथा आकाश प्रदेश (च) और (प्राणः) जीवन के निमित्त दश प्राण और (मुखात्) मुख्य ज्योतिर्मय भक्षणस्वरूप सामर्थ्य से (अग्निः) अग्नि (अजायत) उत्पन्न हुआ है, ऐसा तुमको जानना चाहिये ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - जो यह सब जगत् कारण से ईश्वर ने उत्पन्न किया है, उसमें चन्द्रलोक मनरूप, सूर्य्यलोक नेत्ररूप, वायु और प्राण श्रोत्र के तुल्य, मुख के तुल्य अग्नि, ओषधि और वनस्पति रोमों के तुल्य, नदी नाडि़यों के तुल्य और पर्वतादि हड्डी के तुल्य हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥१२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(चन्द्रमाः) चन्द्रलोकः (मनसः) मननशीलात् सामर्थ्यात् (जातः) (चक्षोः) ज्योतिःस्वरूपात् (सूर्यः) सूर्यलोकः (अजायत) जातः (श्रोत्राद्) श्रोत्रावकाशरूपसामर्थ्यात् (वायुः) (च) आकाशप्रदेशाः (प्राणः) जीवननिमित्तः (च) (मुखात्) मुख्यज्योतिर्मयाद्भक्षणरूपात् (अग्निः) पावकः (अजायत) ॥१२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! अस्य ब्रह्मणः पुरुषस्य मनसश्चन्द्रमा जातश्चक्षोः सूर्य्योऽजायत श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायतेति बुध्यध्वम् ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - यदिदं सर्वं जगत् कारणादीश्वरेणोत्पादितं वर्त्तते तत्र चन्द्रलोको मनःस्वरूपः सूर्य्यश्चक्षुःस्थानी वायुः प्राणश्च श्रोत्रवन्मुखमिवाग्निर्लोमवदोषधिवनस्पतयो नाडीवन्नद्योऽस्थिवत् पर्वतादिर्वर्त्तत इति वेदितव्यम् ॥१२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे सर्व जग परमेश्वराने कारणापासून उत्पन्न केलेले आहे. त्यात चंद्रलोक मनरूप व सूर्यलोक नेत्ररूप आहेत. वायू व प्राण श्रोत्राप्रमाणे, मुख अग्नीप्रमाणे, औषधी व वनस्पती रोमाप्रमाणे, नद्या नाड्यांप्रमाणे व पर्वत अस्थीप्रमाणे आहेत हे जाणा.